दक्षिणा Dakshina
अपने मन से दक्षिणा दें 21, 51, 101, 501, 1100, 2100, 3100, 5100, 11000 ……
यह किसी गुरु, ब्राह्मण, पंडित, या सेवक को उनके ज्ञान, अनुष्ठान या सेवा के बदले दिया गया आभार-रूपी उपहार है।
जब कोई व्यक्ति आपकी कुंडली देखता है, पूजा करता है, मंत्र जाप करता है –
वह अपने समय, ऊर्जा और तप का अंश आपको देता है।
दक्षिणा देने से उस कर्म का संतुलन होता है।
ज्योतिष या पूजा के बाद अगर दक्षिणा नहीं दी जाती,
तो माना जाता है कि उस अनुष्ठान का पुण्य अधूरा रह जाता है।
दक्षिणा देने से वह फल देने योग्य बनता है।
मैं श्रद्धा और आदर सहित यह दक्षिणा अर्पित करता/करती हूँ।
यह केवल एक वस्तु नहीं, बल्कि मेरे मन की कृतज्ञता और समर्पण का प्रतीक है।
आपके द्वारा दिए गए ज्ञान, आशीर्वाद और मार्गदर्शन से मेरा जीवन पावन हो — यही मेरी प्रार्थना है।



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